बना-बना के मिटाता है क्यों ?
बना-बना के मिटाता है क्यों ?
राह और रास्ते भटकाता है क्यों ?
जिन्हें तू खुद इस दुनिया में लाता,
उन्हीं को फिर रुलाता है क्यों?
अगर उनहे रुलाना ही था,
उन्हें दुनिया में लाता है क्यों ?
सुंदर-सुंदर फूलों को तू,
बना-बना के मुरझाता है क्यों ?
अगर तुझे उन्हें मुरझाना ही है,
फिर तू उन्हें खिलाता है क्यों ?
नाज़ुक सी बेल ज़मीन पर ही,
भरकम तरबूज़ व पेठा उगाता है क्यों ?
बढ़े बढ़े पीपल व बेरी के पेड़ पर,
छोटे-छोटे फल लगाता है क्यों?
तू न्याय करने वाला है, फिर भी,
ऐसा अन्याय करता है क्यों ?
किसी को कुछ भी नहीं देता,
किसी को नाक तक भर देता है क्यों ?
पापियों को फूलों-सा रखता है,
गुनहगारों को खुशियाँ देता है क्यों ?
कईयों को देता है ढेरों सौगातें,
कईयों को दुखों में डुबो देता है क्यों ?
बरसात समंदर पर होती है,
रेगिस्तान सुखा देता है क्यों ?
किसी को देता है भारी बालों के गुछे,
किसी को गंजा कर देता है क्यों ?
परमात्मा का जवाबः
ये मेरी कुदरत के राज निराले,
जो इंसान की समझ से पराले,
तू ‘प्रीत’ क्यों बहलाता है?
काहे अपनी टाँग अडाले।
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