सिख हूँ
मैं नफ़रत में यक़ीन नहीं करता
क्यूँकि मेरी प्रार्थना में रोज़
'सरबत का भला' माँगा जाता है
और मेरी परम्परा
युद्ध में दुश्मन को भी
पानी पिलाने की है
मैं तानाशाही को नहीं मानता
क्यूँकि मेरा पंथ
'पंच प्यारों' की लोकतांत्रिक
सत्ता का पैरोकार है ।
मैं बौद्धिक आक्रामकता के ख़िलाफ़ हूँ
क्यूँकि ख़ुद गुरु
'गुरु चेला' के
सिद्धांत को मानते थे
इसीलिए
अपने द्वारा चुने गए 'पंच प्यारों' से
दीक्षा लेते हैं
और अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ भी
पंचों के राय के आगे
सिर झुकाते हैं ।
मैं जातिवाद का विरोधी हूँ
क्यूँकि मैं जानता हूँ
कि पंच प्यारे भी
दलित-पिछड़ों में से थे
और मेरे गुरु ने
उन्हें अपना गुरु माना था ।
मैं मानवाधिकार का समर्थक हूँ
क्यूँकि सिक्ख इतिहास
ग़रीब, मजलूम, सताए हुए
लोगों के लिए
अपना शीश दे कर
सर्वोच्च बलिदान देने का है ।
मैं सब पर विश्वास और भरोसे का हिमायती हूँ
क्यूँकि मैं जानता हूँ कि
दशम गुरु ने अपने चारों बेटे
और अपना पूरा परिवार खो कर भी
तमाम छल कपट, धोखे खा कर भी
अरदास में सिक्खों को
'विश्वास दान' और 'भरोसा दान'
देने की बात कही है।
मैं शालीनता का पुरज़ोर हिमायती हूँ
क्यूँकि मेरी अरदास में रोज़
'सिक्खों को मन नीवां, मत ऊँची'
यानी ऊँची सोच और विनम्रता
की दरखास्त
ईश्वर से की जाती है।
मैं सच कर्म से डरता नहीं हूँ
क्यूँकि मुझे सिखाया गया है
कि 'शुभ करमन ते कबहुँ न डरूँ'
और साथ ही
'कि निश्चय कर अपनी जीत करूँ'।
*मैं धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता*
क्यूँकि गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है
'अव्वल अल्लाह नूर उपाया
कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपजया
कौन भले कौन मंदे।'
🙏🏼वाहेगुरुजी🙏🏼.
by Unknown
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